पुर्णिका _ सजा ए इश्क।
मुझे तुमसे दिल लगाने को सजा तो मिलनी ही थी।
पत्थर से सिर टकराने की सजा तो मिलनी ही थी ।
सहा तेरा हर जुल्म ओ सितम तेरी खुशी के लिए।
बंजर में फूल खिलाने की सजा तो मिलनी ही थी।
थक गई मेरी आंखे तेरे इंतजार में तुम आए नही।
पतझड़ में बहार लाने की सजा तो मिलनी ही थी।
यकीं किया तो किस पर मिलता है दुश्मनों से सदा।
बेवफा पर जान लुटाने की सजा तो मिलनी ही थी।
गुमान है हुश्नो जमाल अपनी कातिल अदाओं बहुत।
मीठा जहर मुंह लगाने की सजा तो मिलनी ही थी।
श्याम कुंवर भारती
बोकारो, झारखंड
Gunjan Kamal
18-Jan-2024 02:58 PM
👏👌
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Mohammed urooj khan
17-Jan-2024 02:03 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Alka jain
17-Jan-2024 09:14 AM
V nice
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